Thursday, 28 January 2016

अचूक उपाय: कोलेस्ट्रोल रहेगा हमेशा कंट्रोल

अचूक उपाय: कोलेस्ट्रोल रहेगा हमेशा कंट्रोल

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कहा जाता है की लहसुन अमृत फल था जिसको भगवान ने ऐसी गंध दे दी जिससे अमृत के बार में लोगो
को पता न चल सके ।
खैर जो भी हो , कहा जाता है की लहसुन को नियमित सेवन करने वाले 100 वर्षों तक जीवित रहते हैं , क्यूंकि शुगर और कोलेस्ट्रोल कंट्रोल में रहता है
और डाइयबिटीस और दिल की बीमारियां दूर रहती हैं
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कोलेस्ट्रोल, एक ऐसी समस्या है जो अब आम बनती जा रही है। कोलेस्ट्रोल कम करने का अर्थ है हृदय रोग का सही उपचार। आईये, कोलेस्ट्रोल को कम करने के कुछ घरेलू नुस्खो पर एक नजर डालते है।
- कच्ची लहसुन रोज सुबह खाली पेट खाने से कोलेस्ट्रोल कम होता है।
- रोज 50 ग्राम कच्चा ग्वारपाठा खाली पेट खाने से खून में कोलेस्ट्रोल कम हो जाता है।
- अंकुरित दालें भी खानी आरंभ करें।
- सोयाबीन का तेल अवश्य प्रयोग करें यह भी उपचार है।
- लहसुन, प्याज, इसके रस उपयोगी हैं।
- नींबू, आंवला जैसे भी ठीक लगे, प्रतिदिन लें।
- शराब या कोई नशा मत करें, बचें।
- इसबगोल के बीजों का तेल आधा चम्मच दिन में दो बार।
- दूध पीते हैं तो उसमे जरा सी दालचीनी) डाल दो, कोलेस्ट्रोल कण्ट्रोल होगा।
- रात के समय धनिया के दो चम्मच एक गिलास पानी में भिगो दें। प्रात: हिलाकर पानी पी लें। धनिया भी चबाकर निगल जाएं।
- 30 पत्ते तुलसी के, उसका रस निकाल दिया, नहीं तो 30 पत्ते तुलसी के और 1 नींबू निचोड़ लिया। तुलसी के पत्तों का रस मिले ऐसे चबाते गए और नींबू का पानी (1गिलास) पीते गए।


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एक प्रचलित कथा के अनुसार जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मन्थन किया तो उसमें से अमृत भी निकला था। राहु नामक राक्षस ने  छल सेे अमृत का एक घूंट पी लिया। जब भगवान विष्णु को इस बात का पता चला तो वे क्रोधित हो उठे और उन्होंने तुरन्त राहु का सिर काट दिया। इससे अमृत का कुछ भाग पृथ्वी पर गिर गया। पृथ्वी पर गिरे अमृत के उस भाग से लहसुन पैदा हुआ। क्योंकि पृथ्वी पर गिरे ेहुए अमृत का पहले राक्षस द्वारा सेवन किया गया था, इसलिए ब्राह्मणों द्वारा इसके सेवन का निषेध कर दिया गया। राक्षस द्वारा सेवन किए गए अमृत से उत्पन्न होने के कारण ही यह दुर्गन्धयुक्त होता है।
एक अन्य कथा के अनुसार अनेकों वर्षों तक इन्द्र की कोई सन्तान नहीं थी। सन्तान प्राप्ति के उद्देश्य से इन्द्र ने अपनी पत्नी को अमृत पीने के लिए दिया। इन्द्र की पत्नी पूरा अमृत न पी सकी। अमृत को पचा सकने की क्षमता न होने के कारण उसने अमृत का कुछ अंश उल्टी करके गिरा दिया। वह सीधा पृथ्वी पर आ गिरा। पृथ्वी दुर्गन्धयुक्त है परन्तु अमृत सुगन्ध से भरपूर था। उल्टी किये जाने के कारण तथा पृथ्वी की दुर्गन्ध के कारण स्वर्ग लोक से पृथ्वी पर गिरे हुए अमृत से लहसुन पैदा हुआ जिसका असर अमृत के समान गुणकारी है परन्तु यह दुर्गन्धयुक्त अवश्य है। क्योंकि लहसुन का मूल बीज उल्टी के रूप में पृथ्वी पर आया था, इसी कारण ब्राह्मणों द्वारा सेवन किये जाने के लिए यह निषिद्ध हो गया।
लहसुन को अंग्रेजी में Garlic गुजराती में लसण, पंजाबी में थूम तथा संस्कृत में लशुन कहा जाता है। यघपि लहसुन के पत्तों का भी सब्जी में प्रयोग किया जाता है परन्तु मुख्य उपयोग इसकी जड़ का होता है। लहसुन की पत्तियां हरी, चपटी तथा सिकुड़ी हुई होती हैं। इसकी जड़ अनेक गिरियों से मिलकर बनती है। ये गिरियां एक पतली सी सफेद या गुलाबी झिल्ली से ढकी रहती है। लहसुन की खेती प्रायः अधिकांश गर्म जलवायु अथवा सम जलवायु (जहां न अधिक ठंड पड़ती हो और न ही अधिक गर्मी) वाले देशों में होती है। भारत में इसकी बुआई प्रायः सितम्बर या अक्टूबर माह में की जाती है। उस समय इसके लिए मौसम अधिक अनुकूल होता है क्योंकि तब न ठंड पड़ती है और न ही गर्मी होती है। बीज के रूप में लहसुन की गिरियों को जमीन में बोया जाता है और लगभग तीन—चार माह में ही इसकी फसल तैयार हो जाती है। भारत में कुछ स्थानों पर लहसुन की केवल एक ही मोटी गिरी होती है। स्वाद तथा गन्ध में वह सामान्य लहसुन के बराबर ही होती है।
लहसुन से अनेक प्रकार की दवाईयां बनती हैं। आयुर्वेद में इसका प्रयोग विभिन्न बीमारियों के इलाज में किया जाता है। इसमें प्रमुख हैं: जोड़ों में दर्द, गठिया, गर्दन व हड्डियों का दर्द तथा कमर दर्द आदि। लहसुन का प्रयोग करने से व्यक्ति की पाचन शक्ति बहुत अच्छी हो जाती है, भूख अधिक लगती है। यह रक्तशोधक भी है। इससे अन्य बीमारियों खासकर त्वचा संबंधी बीमारियों में उपयोगी है। विभिन्न बीमारियों के इलाज के लिए इसका मुख्य रूप से दो तरह से इस्तेमाल किया जाता है। रस निकालकर व पेस्ट बनाकर। खाने में लहसुन का स्वाद अच्छा नहीं होता और उसमें गन्ध भी काफी होती है, इसी कारण इसके रस अथवा पेस्ट का सीधा सेवन करना कुछ कठिन होता है। सीधा प्रयोग करने से अनेक लोगों का या तो जी मिचलाने लगता है अथवा उलटी हो जाती है या काफी घबराहट हो जाती है। अतः इसके स्वाद को ठीक करने के लिए इसमें सुविधानुसार कुछ शहद मिला लेना चाहिए। खाली पेट सेवन करने से इसका लाभ अधिक होता है। यदि खाली पेट इसका सेवन करने में कठिनाई हो तो इसे भोजन के उपरान्त भी लिया जा सकता है। इसका काढ़ा बनाकर अथवा इसे पीसकर गोलियां बनाकर भी इसका सेवन किया जा सकता है। इसे पीसकर दर्द वाले स्थान पर लगाने से दर्द कम ही जाता है
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